Monday, February 16, 2009

मन स्वयं को दूसरों पर होम कर दे



मन स्वयं को दूसरों पर होम कर दे
माँ हमारी भावना तू व्योम कर दे !

ज्योति है तू ज्योत्सना का वास तुझमें
फिर अमावस से विलग तम तोम कर दे !

कुछ नहीं, कुछ भी नहीं तुझसे असम्भव
तू अगर चाहे गरल को सोम कर दे !

तू सनातन स्नेहमयि माँ, चिर तृषित हम
नेहपूरित देह का हर रोम कर दे !

धन्य हो जाए सृजन की पूत वीणा
माँ कृपा कर तू स्वरों को ओम कर दे !


- कमलेश भट्ट कमल
(सद्य प्रकाशित गजल संग्रह मैं नदी की सोचता हूँ से )