Sunday, October 09, 2011

पिंजरें में कैद पंछी

पिंजरें में कैद पंछी कितनी उड़ान लाते
अपने परों में कैसे वो आसमान लाते।

कागज पे लिखने भर से खुशहालियाँ जो आतीं
अपनी गजल में हम भी हँसता सिवान लाते।

हथियार की जरूरत बिल्कुल नहीं थी भाई
मज़हब की बात करते, गीता कुरान लाते।

तन्हा ज़बान की तो लत झूठ की लगी थी
फिर रहनुमा कहाँ से सच की ज़बान लाते।

पहले ही सुन चुके हैं आँसू के खूब किस्से
अब तो कहीं से खुशियों की दास्तान लाते।


-कमलेश भट्ट कमल

5 comments:

Suman Dubey said...

कमलेश भैया नमस्कार, उम्दा गजल लिखते है आप तो पिंजरे----

Tamasha-E-Zindagi said...

आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (२८ अप्रैल, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - इंडियन होम रूल मूवमेंट पर स्थान दिया है | हार्दिक बधाई |

Tamasha-E-Zindagi said...

आपकी यह पोस्ट आज के (२५ मई २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - किसकी सजा है ? पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई और सादर आभार |

Tamasha-E-Zindagi said...

आपकी यह पोस्ट आज के (२५ मई २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - किसकी सजा है ? पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई और सादर आभार |

कालीपद "प्रसाद" said...

बढ़िया ग़ज़ल
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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