कौन मानेगा
सबसे कठिन है
सरल होना.
सबसे कठिन है
सरल होना.
फूल सी पली
ससुराल में बहू
फूस सी जली.
हज़ार हाथों
वृक्षों ने की दुआएँ
हमने नहीं।
वृक्षों ने की दुआएँ
हमने नहीं।
दोनों तय हैं
अँधेरे का छँटना
भोर का होना।
अँधेरे का छँटना
भोर का होना।
कौन–सी खुशी
उजागर करते
रोज फव्वारे।
उजागर करते
रोज फव्वारे।
दहला गयी
मौन बैठे ताल को
नन्हीं कंकरी।
मौन बैठे ताल को
नन्हीं कंकरी।
धूल ढँकेगी
पत्तों की हरीतिमा
कितने दिन।
पत्तों की हरीतिमा
कितने दिन।
पल को सही
तोड़ा तो जुगुनू ने
रात का अहं।
तोड़ा तो जुगुनू ने
रात का अहं।
हरेक दुखी
दुखियारे जग में
कौन है सुखी।
दुखियारे जग में
कौन है सुखी।
गगन में ही
कब तक उड़ेंगे
धरा के पंक्षी।
कब तक उड़ेंगे
धरा के पंक्षी।
तोड़ देता है
झूठ के पहाड़ को
राई–सा सच।
झूठ के पहाड़ को
राई–सा सच।
आते ही आते
तानाशाह सूर्य ने
दिए बुझाए।
तानाशाह सूर्य ने
दिए बुझाए।
मर जाएँगे
हरियाली के साथ
हम सब भी।
हरियाली के साथ
हम सब भी।
2 comments:
kamlesh ji bahut gahri bat kah jate hain aap apni kavitaon main--- "Tod deta hai/ jhuth ke pahad ko/ rayi sa sach" sab kuch kah diya aapne itane kam shabdon main. wah !! bahut hi sunder.
Ramnika sen, mizoram
behad pasand ayee.
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