Thursday, April 14, 2005

पेड, कटे तो छाँव कटी फिर

पेड, कटे तो छाँव कटी फिर आना छूटा चिड़ियों का
आँगन आँगन रोज, फुदकना गाना छूटा चिड़ियों का

आँख जहाँ तक देख रही है चारों ओर बिछी बारूद
कैसे पाँव धरें धरती पर‚ दाना छूटा चिड़ियों का

कोई कब इल्ज़ाम लगा दे उन पर नफरत बोने का
इस डर से ही मन्दिर मस्जिद जाना छूटा चिड़ियों का

मिट्टी के घर में इक कोना चिड़ियों का भी होता था
अब पत्थर के घर से आबोदाना छूटा चिड़ियों का

टूट चुकी है इन्सानों की हिम्मत कल की आँधी से
लेकिन फिर भी आज न तिनके लाना छूटा चिड़ियों का


॥कमलेश भट्ट कमल॥

2 comments:

Anonymous said...

wah ! kamlesh ji maza aa gaya
kya sunde bat kahi hai aapne aur kitne saleeke se. aapki gazalain padker bahut achcha mahsush kar raha hon. badhayi. aur gazalain kab de rahe hain......
R.laxami, singapur

Anonymous said...

Kamlesh ji kuch aur naya dijye taki hum padhker labhanwit ho sakein.
Ek pathak